Bhoot Ki Kahani – पति ट्रेन की टिकट् लेने गए हैं

 Bhoot Ki Kahani

एक डरावनी सच्ची कहानी जो आपके होश उड़ा देगी मदन उसकी पत्नी सोभा शहर में नए-नए आये थे वो दोनों यहाँ किसी को भी नहीं जानते थे,

सोभा परेशान थी की शहर में तो आ गए हैं लेकिन यहाँ हम किसी को नहीं जानते, कैसे क्या करेंगे मदन ने सोभा को जब ”परेशान ”देखा तो उसकी परेशानी का कारण पूछा तब सोभा ने उसको अपनी चिंता का कारण  बताया.

”मदन उसे समझाते हुए कहा ” तुम चिंता मत करो में कुछ ना कुछ इन्तेजाम जरुर कर लूँगा.

ये कहते हुए वो दोनों रोड पे आगे की तरफ कदम बढ़ाये जा रहे थे,की अचानक  सोभा से एक आदमी टकराया.

”उस आदमी ने सोभा को सभालते हुए” कहा माफ़ कीजियेगा मैंने आपको देखा नहीं, सोभा और मदन ने कहा कोई बात नहीं, वो आदमी फिर बोला शहर में पहले आपको नहीं देखा लगता है नए आये हैं जी हाँ हम इस शहर में नए हैं.

यहाँ हम किसी को नहीं जानते सोभा और मदन ने हाँ में सर हिलाते हुए जबाब दिया,
फिर उस आदमी ने अपना परिचय दिया जी मेरा नाम रफीक है और में पास ही की बस्ती में रहता हूँ.

अगर आपको कोई आपत्ति ना हो तो आप मेरे यहाँ ठहर सकते हैं जब तक आपको कोई मकान नहीं मिल जाता.

और वह सोभा की तरफ एकटक देखे ही जा रहा था, सोभा सोचने लगी की एक अनजान इंसान भला इस अनजान शहर में हमारी मदद करने के लिए आखिर क्यों तैयार है.

जबकि आजकल तो बिना मतलब के कोई किसी को तक नहीं पूंछता, सोभा सोच ही रही थी की मदन ने उसके कंधे को पकड़ कर जोर से हिलाया.

”अरे क्या सोच रही हो” चलो अच्छा हुआ इन्तेजाम हो गया घर का अब आराम से घर खोजेंगे कहते हुए मदन ने राहत की साँस ली.

दोनों रफीक के साथ उसके घर आ गये आप लोग मुंह हाथ धो लीजिये में बाहर से आपके लिए कुछ खाने को ले आता हूँ, कहते हुए रफीक शोभा की तरफ घूरती हुई नजरो से देखते हुए दरवाजे से बाहर की ओर निकल गया.

रफीक के जाने के बाद शोभा ने मदन से ”कहा” सुनिए जी मुझे ये आदमी कुछ ठीक नहीं लग रहा और ना ही ये जगह मुझे सही लग रही हम कहीं और चलकर रहते हैं.

एक तो रात होने वाली है उपर से भले आदमी ने हमारी मदद की है उसका एहसान मानने के वजह तुम उसपर शक कर रही हो मदन झुंझलाते हुए बोला.

बेचारी शोभा समझ नहीं पा रही थी की मदन को कैसे समझाये, क्यूंकि बस वही रफीक की उन नजरों को महसूस कर पा रही थी और मदन था की रफीक के गुण गाते नहीं थक रहा था.

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रात हो गई खाना खा के सब सो गये करीब रात के 2 बजे शोभा को अपने हाथ के उपर कोई नुकीली चीज महसूस हुई.

कई बार तो शोभा ने नींद में ही उस चीज को झटक दिया,थोड़ी देर बाद फिर उसे अपने हाथ के उपर वो नुकीली चीज महसूस होने लगी.

अब शोभा की आंखे खुली उसने इधर उधर देखा तो रात के सन्नाटे के अलावा वहाँ कोई नहीं था, जैसे ही वो अपने बिस्टर पर लेटने को मुड़ी उसके सामने एक विकराल शरीर वाला कोई था, जो इंसान तो बिलकुल नहीं था.

शरीर मानो जैसे सडा गला मांस जिसकी दहेकती हुई लाल ऑंखें सोभा के एकदम सामने थीं और उसे घूरे जा रहीं थीं, ये देख शोभा डर से थर-थर कांपते हुए चिल्लाई उसकी चीख सुन मदन की नींद खुल गई.

मैंने तुमसे कहा था ना हम कहीं और चलते हैं, यहाँ मुझे ठीक नहीं लग रहा  लेकिन तुम नहीं माने कहते हुए शोभा जोर-जोर से रोने लगी.

क्या हुआ लगता है कोई बुरा सपना देखा बाथरूम की तरफ से आते हुए रफीक मदन के पास आकर बैठते हुए ”बोला” मैंने तो बाथरूम में ही आपके चीखने की आवाज सुनी थी तभी में दौड़ के इस तरफ आया रफीक ने कहा .

शोभा इतनी डर चुकी थी की वो अब कुछ बोल ही नहीं पा रही थी, दिन निकला सभी ने नास्ता किया फिर दोपहर का खाना खाया शाम को मदन ने रफीक से कहा तुम जाकर रात का खाना ले आओ में शोभा के पास हूँ.

उसको छोड़कर में नहीं जा सकता क्यूंकि ये बहुत डरी हुई है, ठीक है कहते हुए रफीक मार्किट चला गया.

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रात का खाना खाने के बाद सभी सोये हुए थे की अचानक शोभा को किसी ने पुकारा शोभा तुम कह रहीं थी ना यहाँ से चलते हैं चलो आओ मेरे साथ मेरे पीछे-पीछे आ  जाओ  और हाँ अपने गहने भी ले लेना साथ में.

शोभा अधजगी अधसोई सी उसके पीछे पीछे ऐसे चल दी मानो शोभा को अपनी सुध ही ना हो, थोड़ी दूर चलने के बाद शोभा एक उंची जगह पे बैठ गई, और उस आवाज ने ”शोभा से कहा”

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शोभा में टिकेट लेकर आ रहा हूँ ठीक है जब तक में ना आऊँ तुम यहाँ से कही मत जाना, सुबह हुई मदन उठा उसने देखा शोभा अपने बिस्तर पे नहीं है, और ना ही रफीक अपने बिस्तर पर था.

मदन घबराया और इधर-उधर पागलों की तरह शोभा को ढूँढने लगा, मदन को ऐसे देख बस्ती के लोग इकठ्ठा हो गए और पूछने लगे क्या बात है भाई, किसे ढूंड रहे हो मदन ने बताया में और मेरी बीवी 2 दिन पहले ही इस शहर में आये हैं.

हम यहाँ किसी को नहीं जानते बस रफीक को जानते हैं और उसी के घर में रह रहे थे, ”कहते हुए”

मदन ने जहाँ रफीक का घर था उस ओर इशारा करते हुए अपना हाथ उठाया, गाँव का ही एक बुजुर्ग बोला बेटा जिस ओर तुम इशारा कर रहे हो उधर तो कब्रिस्तान के अलावा कुछ नहीं है.

और तुम कह रहे हो वह किसी का घर है, ये कैसे मुमकिन है, उस बुजुर्ग के इतना कहते ही मदन ने पलट कर उस तरफ देखा जहाँ, कुछ देर पहले वो सोया हुआ था.

वहां दूर- दूर तक कोई घर दिखाई नहीं दे रहा रहा था सिवाये कब्रिस्तान के, ये देखकर तो मदन के जैसे पैरों तले जमीं ही निकल गई.

अब वो गाँव वालों से वो सारी बातें बताने लगा कैसे वो अपनी पत्नी के साथ इस बस्ती में आया, कैसे रफीक से मिला सबकुछ बताया कुछ लोग तो मदन को पागल भी कहने लगे  की ये ऐसी बहकी-बहकी बातें कर रहा है लगता है कोई पागल है.

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एक व्यक्ति ने मदन की बातों को ध्यान से सुना और शोभा को ढूँढने की बात कहने लगा अब सब लोग शोभा को ढूँढने में जुट गए सारे गाँव में ढूंड लेने के बाद भी सोभा कहीं नहीं मिली.

किसी ने कहा क्या घर की छतों पर भी देखा, फिर सभी अपने-अपने घरों की छतों पर चढ़ गए, एक युवक ने अपनी छत से आवाज लगाई एक औरत सामने वाली छत पर बैठी है.


जैसे तैसे करके सीढ़ी लगाकर लोग छत पर चढ़े साथ में मदन भी चढ़ गया, उपर जाके देखा तो शोभा छत पर ऐसे बेठी थी जैसे मानो किसी का इन्तेजार कर रही हो.


मदन ने शोभा के सर पर हाथ रक्खा और पूंछा शोभा तुम यहाँ क्या कर रही हो, बेसुध सी शोभा ने जबाब में जो कहा उसे सुनकर सबके होश ही उड़ गए .

”शोभा ने कहा”

मेरे पति ट्रेन की टिकेट लेने गए हैं मुझे यहाँ बेठेने को कह गए हैं, और में अपने सारे गहने भी ले आई हूँ बस अभी आते ही होंगे इतना कहकर शोभा बेहोश हो गई.

आश्चर्य की बात तो ये थी की जिस घर की छत पर शोभा बेठी हुई थी उस छत पर चढ़ने का कहीं से भी कोई रास्ता नहीं था, ना सीढियां थीं और ना ही कोई और ही रास्ता.

 

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