Short Stories in Hindi With Moral { पंचतंत्र की 5 कहानियां }

 Short Stories in Hindi With Moral Values

किसी गाँव में एक मूर्तिकार रहता था उसकी बनाई मूर्तियाँ बहुत सुन्दर होती थी, एक बार उसने देवी की बहुत ही सुन्दर मूर्ति बनाई,

वह मूर्ति उसे दुसरे गाँव में  पहुचानी थी, इसलिए उसने अपने मित्र धोबी से उसका गधा मांगा और मूर्ति उसपर लादकर चल पड़ा,

मूर्ति इतनी सुन्दर और सजीव थी की उसे जो भी देखता श्रद्धा से नमस्कार जरुर करता रास्ते भर यही सब होता रहा यह देखकर मुर्ख गधे ने सोचा की सब उसे ही नमस्कार कर रहे हैं,

जैसे ही यह बात उसने सोची वह रास्ते में घमंड से खडा होकर जोर-जोर से रेंकने लगा, मूर्तिकार ने गधे को पुचकारकर समझाया की ये लोग तुम्हे नहीं मूर्ति को नमस्कार कर रहे हैं.

मगर गधा तो गधा था, अगर सीधी बात बिना पिटे उसे समझ आ जाती तो उसे गधा कौन कहता, वह रेंकता ही रहा अंत में मूर्तिकार ने उसकी डंडे से जमकर पिटाई की, मार खाने के बाद गधे का सारा घमंड उतर गया। 

और उसे पता चल गया की में गधा हूँ उसके होश ठिकाने आने पर वह फिर से रास्ते पर चल पड़ा।

 

Moral – इस कहानी से हमें ये शिक्षा मिलती है की कभी भी किसी को घमंड नहीं करना चाहिए.



नकली माँ-असली माँ 

दो पड़ोसन अच्छी सहेलियां थीं, परन्तु दोनों ही संतानहीन थीं, भगवान् की कृपा से एक महिला को कुछ समय पश्चात बेटा हुआ। 

दोनों ने तय किया की वे दोनों मिलकर उसे पालेंगी, और ना बच्चे को ना गाँव वालों को ही बतायेंगी, की बच्चे की असली माँ कौन है। 

मगर एक दिन पड़ोसन का मन बेईमान हो गया वह बोली की अब ना तुम बच्चे को खिला पिला सकती हो, और ना ही गोद ले सकती हो यह मेरा बच्चा है, इसका पालन पोषण अब में करुँगी.

यह सुनकर बच्चे की असली माँ घबरा गई, और जबरन बच्चा उससे छिनने लगी, बच्चे को लेकर दोनों में झगडा हो गया, दोनों के कहे अनुसार दोनों ही उसकी माँ हैं,

जब झगडा नहीं सुलझा तो मामला न्यायालय में पहुँच गया, न्यायधीश ने दोनों की बातों को ध्यानपूर्वक सुना मगर वह भी निर्णय ना कर सके, की बच्चे की असली माँ आखिर है कौन। 

काफी देर सोचने के बाद आखिरकार न्यायधीश को एक उपाय सुझा उसने आदेश दिया, की बच्चे के दो टुकड़े करने के बाद दोनों को एक-एक टुकडा दे दिया जाये, यह सुनते ही दोनों में से एक महिला जोर-जोर से रोने लगी,

और बोली नहीं  “हुजुर” ये बच्चा आप इसी को दे दो मगर मेरे लाल का अहित ना करो में बच्चे पर अपना दावा छोडती हूँ, यही इसकी असली माँ है, दूसरी महिला अपनी जीत पर गर्व से खाड़ी थी.

यह देखकर चतुर न्यायधीश तुरंत जान गया की बच्चे की असली माँ कौन है, उसने बच्चा उस महिला को सोंप दिया और उस दूसरी दुष्ट महिला को कारागार में डलवा दिया.


खुराफाती बन्दर 

किसी नगर में एक मकान में लकड़ी का काम चल रहा था, बढ़ई लकड़ी के एक बड़े लट्ठे को चीर रहा था उसे लकड़ी के दो टुकड़े करने थे उसी काम में दोपहर होने पर वह लट्ठे को पूरा चीर ना सका.

उसने लट्ठे में कील लगाईं और खाना खाने चला गया, कुछ देर बाद वहाँ बंदरों का एक झुण्ड आकर उत्पात मचाने लगा, उनमे एक बन्दर महा उत्पाती था वह हमेशा उलटे पुल्टे काम करता रास्ते में आने जाने वालो लोगों को तंग करता व् खाने पिने की चीजें भी चीन लेता था 

दुसरे बन्दर उसे समझाते थे किन्तु उसपर कोई असर नहीं होता था, उसी झुण्ड में उत्पाती बन्दर की दादी भी रहती थी, वह उसे समझाती की देखो अब तुम्हारे माता-पिता इस संसार में नहीं हैं, यदि तुम्हे कुछ हो गया.

तो में किसके सहारे जिउंगी, दादी की बात सुनकर वह कुछ समय तक शेतानी नही करता था, मगर कुछ समय बाद फिर से वो शेतानी करने लग जाता, वह उत्पाती बन्दर अब उस लकड़ी के लट्ठे से छेड़खानी करने लगा.

कुछ देर तक वह इधर-उधर देखता रहा, अचानक उसकी नजर लकड़ी में गडी हुई कील पर पड़ी, अब वह कील के पास पहुंचा और उसे हिलाने लगा, मगर कील टस से मस तक ना हुई.

ऐसा करते देख एक बन्दर ने उसे टोका, मगर उस जिद्दी बन्दर ने ठान लिया था की इस कील को में निकाल कर ही छोडूंगा, वह लकड़ी के गट्ठे पर दोनों पैर लटकाकर बैठ गया, इस तरह बैठने से उसकी लम्बी पूँछ लट्ठे के चिरे हुए हिस्से में आ गई,

वह कील को जोर-जोर से हिलाने लगा बार-बार हिलाने से कील थोड़ी बाहर निकलने लगी, बन्दर ने ज्यादा जोर लगाया तो कील एक झटके में लकड़ी से बाहर आ गई, जैसे ही कील निकली वैसे ही लट्ठे के दोनों हिस्से आपस में चिपक गये.

और बन्दर की पूँछ उसमें दब गई, बन्दर दर्द के मारे जोर-जोर से चिल्लाने लगा, उसे बढई के नुकशान की वजह से पिटाई का डर भी सता रहा था, वह पूँछ निकालने के लिए छटपटाने लगा, वह जोर लगाकर जैसे ही उछला उसकी पूँछ टूट गई, वह तेजी से भागकर एक पेड़ पर चढ़ गया और अपनी कटी पूँछ देखकर रोने लगा।


Moral – इतनी शेतानी भी नहीं करनी चाहिये की लेने के देने पड जाएँ.


समझदार किसान

एक किसान को नदी पार करनी थी उसके पास एक शेर, एक घास का गट्ठर और एक बकरी थी, नदी पार करने के लिए घाट पर एक नाव खड़ी थी.

एक बार में सिर्फ दो ही लोग उसमें सवार होकर जा सकते थे, किसान ने सोचा की अब क्या करूं? यदि पहले में शेर को ले जाता हूँ तो बकरी घास खा जाएगी.

यदि घास ले जाता हूँ तो शेर बकरी को खा जाएगा, इसी उधेड़बुन में डूबे, किसान को एक उपाय सुझा, किसान पहले बकरी को लेकर चला और उस पार छोड़ आया, फिर वापस आकर शेर को ले गया और शेर को वहां छोडकार  बकरी को वापस ले आया.

फिर बकरी को वहाँ छोड़ा और घास का गट्ठर लेकर चला, और उस पार छोड़ आया घास शेर के पास छोड़कर वापस आया और बकरों को ले गया इस प्रकार बिना किसी नुक्सान के उसने नदी पार कर ली.


Moral – समझदारी से काम लेने पर हर समस्या का हल निकल जाता है.


स्वार्थी मित्रों से बचकर रहें

एक घने जंगल में मदोत्कट नामक एक शेर रहता था, उसके तीन मित्र थे गीदड़ कोआ और भेड़िया, वे शेर के मित्र मात्र इसलिए थे क्यूंकि, वह जंगल का राजा था, वे सदैव शेर के आस पास रहते और उसकी हर आज्ञा का पालन करते,

ताकि उनकी हर जटिल मनोकामना की पूर्ति हो सके, उसी जंगल में एक ऊंट भी आ पहुंचा था जो शायद चरते-चरते अपने झुण्ड से बिछुड़ गया था, उसने राह ढूँढने का बहुत प्रयाश किया किन्तु सफलता हाथ ना लगी।

वह ऊंट भूख से परेशान जंगल में यहाँ वहां भटक रहा था की शायद कोई रास्ता बताने वाला मिल जाये, इसी बीच शेर के तीनों मित्रों की निगाह ऊंट पर जा पड़ी जो बेचारा असमंजस में फंसा हुआ यूँ ही घूम रहा था।

”यह तो हमारे जंगल का प्राणी नहीं लगता” सियार बोला क्यूँ ना इसे मारकर खा लिया जाये  नहीं  ”भेड़िये ने कहा” यह तो बहुत बड़ा जीव है चलो चलकर शेर को बताते हैं, हाँ यही ठीक होगा कोआ “बोला”

हमें तो अपने हिस्से का भोजन तभी मिलेगा जब शेर इस ऊंट को मारकर खा लेगा और थोड़ा हमारे लिए भी छोड़ देगा तीनों के मन में लड्डू फूट रहे थे की बहुत समय बाद स्वादिष्ट भोजन खाने को मिलेगा।

“गीदड़ बोला महाराज” ना जाने कहाँ से एक ऊंट आपकी आज्ञा के बिना जंगल में घुस आया है, उसका शरीर बहुत मांसल है आपके भोजन के लिए बहुत अच्छा शिकार है  आप चलकर उसे मार डालें अपने कुटील मित्रों की यह बात सुनकर ”शेर जोर से दहाड़कर बोला”

तुम्हारा दिमाग तो ख़राब नहीं हो गया उस बेचारे ऊंट ने शायद प्राण रक्षा के लिए मेरे जंगल में शरण ली है, उसे मारने के वजय हमें उसे अपनी शरण में लेना होगा ”जाओ उसे हमारे पास लेकर आओ”

शेर का उत्तर सुनकर तीनों कुटिल मित्र निराश हो गये, पर वो कर भी क्या सकते थे, कोई रास्ता ना देख वे उस ऊंट के पास पहुंचे और उसे शेर की अभिलाषा बताई, साथ ही यह भी कहा की वह उसके साथ भोजन करना चाहता है।

वह ऊंट पालतू था किस्मत का मारा भटक कर जंगल में आ पहुंचा था, उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था की क्या करे उस बेतुके आमंत्रण को पाकर  ऊंट बहुत डर गया था, उसे लगने लगा की उसका अंत अब निकट है, और जल्दी ही वह शेर के हाथों मारा जाएगा,

उसने सबकुछ भाग्य भरोसे छोड़ दिया और शेर से मिलने चल दिया, लेकिन ऊंट की आशा के विपरीत शेर उससे मिलकर बहुत प्रसन्न हुआ, उसने बेहद मीठी वाणी में ऊंट से बातें कि, और जंगल में सुरक्षा का विश्वाश दिलाया।

शेर का ऐसा व्यवहार देखकर ऊंट के आश्चर्य का ठिकाना ना था, अब वह भी शेर के तीन अन्य मित्रों के साथ रहने लगा, एक दिन शेर का सामना एक ताकतवर हाथी से हो गया तब शेर अपने साथियों के साथ शिकार की तलाश में भटक रहा था.

हाथी और शेर में इतनी भीषण लड़ाई हुई की तीनों मित्र डरकर वहां से भाग गये। अंत में शेर ने हाथी को मार डाला लेकिन वो स्वयं भी इतनी बुरी तरह घायल हो गया था कि उसके लिए शिकार पर जाना भी दूभर हो गया था। दिन पर दिन बीतते रहे लेकिन शेर को खाना नहीं मिला उसके मित्र भी भूख से तड़पने लगे, क्यूंकि भोजन के लिए वो शेर पर ही निर्भर थे.

लेकिन साकाहारी होने के कारण ऊंट आराम से घास पत्तियाँ खाकर अपना पेट भर रहा था, जब काफी समय तक स्थिति में सुधार नहीं हुआ तो तीनों कुटिल मित्रों को  चिंता सताने लगी, की इस तरह तो भूखों मरने की नोबत आ जाएगी।

एक दिन गीदड़ कोआ और भेडिया तीनों शेर के पास जाकर बोले महाराज आप दिन पर दिन कमजोर होते जा रहे हैं, हमसे यह आपकी दुर्दसा देखि नहीं जाती, क्यूँ नहीं आप ऊंट को मारकर पेट भरने का जुगाड़ करें। ‘

‘नहीं” शेर गुस्से में दहाड़ा वह हमारा मेहमान है” हम उसे नहीं मार सकते आगे से मुझे ऐसी बेतुकी सलाह मत देना, लेकिन तीनों कुटिल मित्रों की कुद्रष्टि तो ऊंट पर टिक चुकी थी।

वे तीनों दूर जाकर बैठ गये और ऊंट को मारने की योजना पर विचार करने लगे, वे ऊंट के पास जाकर बोले मित्र त्तुम्हे तो पता ही है शेर ने पिछले कुछ दिनों से कुछ भी नहीं खाया, वह अपने घावों तथा शारीरिक कमजोरी के कारण शिकार भी नहीं कर पा रहा है।

ऐसे में हमारा फर्ज बनता है की उसके लिए अपना बलिदान कर दें, ताकि राजा के प्राण बच सकें आओ राजा के पास चलें और अपना शरीर उसको भोजन के लिए सोंप दें।

बेचारा भोला-भाला ऊंट उन तीनों की कुटिल योजना को भांप ना सका और गर्दन हिलाकर उनके प्रस्ताव पर अपनी सहमति जता दी, फिर वे चारो शेर के पास जा पहुंचे गीदड़ बोला महाराज हमने हर संभव प्रयाश किया  परन्तु सिकार ढूँढ पाने में असफल रहे, तीनो कुटिल मित्र तो अपनी योजना पर कार्य कर रहे थे, और ऊंट विवशता में उनके साथ था।

अब कौआ आगे आया और स्वयं को शेर के आगे भोजन के लिए पेश कर दिया”तभी गीदड़ बोला” तुम बहुत छोटे हो तुम्हे खाकर भला शेर की भूख कैसे शांत होगी, और गीदड़ ने अब अपना शरीर शेर के भोजन के लिए पेश किया, वह बोला मुझे खाकर अपनी भूख शांत करो आपके प्राण बचाना मेरा परम कर्तव्य हैं।

नहीं तभी भेड़िया बोला राजा की भूख को देखते हुए तुम भी बहुत छोटे हो यह नेक कार्य तो मुझे ही करने दो।  महाराज आप मुझे मारकर अपनी भूख शांत करें ”कहते हुए भेड़िया” शेर के सामने खडा हो गया लेकिन शेर ने उनमें से किसी को नहीं मारा।

ऊंट पास ही खडा उन तीनों का यह नाटक देख रहा था, उसने भी तय किया की वह भी ऐसा ही करेगा वह आगे बढ़कर ”बोला” महाराज आप मेरे मित्र हैं जरूरत में जो काम आये वही सच्चा मित्र होता है, मुझे मारकर खा लीजिये और अपनी भूंख शांत कर लीजिये।

यह कहते समय ऊंट के मन में यही बात चल रही थी की जैसे शेर ने उन तीनों को खाने से मना कर दिया, वैसे ही मुझे खाने से भी मना कर देगा, लेकिन शेर कई दिनों का भूखा था कब तक बर्दाश्त करता शेर को ऊंट का सुझाव पसंद आ गया।

चूँकि ऊंट ने खुद ही खुद को शेर के भोजन के लिए पेश किया था, सो शेर के मन में जरा भी दया नहीं आई वैसे भी गीदड़ शेर के कान पहले ही भर चुका था की महाराज की खातिर ऊंट कोई भी बलिदान करने के लिए तैयार है।

शेर तुरंत ऊंट की तरफ झपटा और ऊंट के टुकड़े कर दिए, तीनों धूर्त मित्रों व शेर ने उसे खाकर अपनी भूख शांत की इसके बाद भी,उनके लिए कुछ दिनों का आहार बच गया.

Moralकुटिल मित्रों से बचकर रहें जरुरी नहीं की मीठी वाणी बोलने वाला मन से भी ऐसा ही हो.

कैसी लगी ये Short Stories in Hindi With Moral Values बताना ना भूलें 

close